रास्ता तंग है लेकिन हमें चलना होगा भीड़ से बच के बहर-हाल निकलना होगा ले लिया हम ने मुक़द्दर से गुलाबों में जनम अब ये सच्चाई है काँटों में ही पलना होगा जिन चराग़ों पे उजालों की है ज़िम्मेदारी आँधियों में भी बिला ख़ौफ़ उन्हें जलना होगा हम ने बर्फ़ीली चटानों से मोहब्बत कर ली वो पिघलती हैं तो हम को भी पिघलना होगा आदमी से लक़ब इंसान का पाने के लिए अपने अरमान को सख़्ती से कुचलना होगा ऐ 'क़मर' पेच-ओ-ख़म-ए-राह पे चलना है तुझे हर क़दम पर तिरे ठोकर है सँभलना होगा