रास्तों में ढेर हो कर फूल से पैकर गिरे बर्ग कितने आँधियों के पाँव में आ कर गिरे ऐ जुनूँ की साअ'तो आमद बहारों की हुई देखना वो शाख़चों से तितलियों के पर गिरे तुम न सुन पाए सदा दिल टूटने की और यहाँ शोर वो उट्ठा ज़मीं पर जिस तरह अम्बर गिरे कौन जाने कितनी यादों से हुआ दिल ज़ख़्म ज़ख़्म चाँदनी बरसी कि मेरी रूह पर ख़ंजर गिरे मुंतज़िर हूँ ग़म के इस तूफ़ान-ए-अब्र-ओ-बाद में कब घटा का शोर कम हो कब हवा थक कर गिरे यूँ हुआ हूँ जज़्ब 'जाफ़र' वक़्त के तूफ़ान में तह मैं गहरे पानियों की जिस तरह कंकर गिरे