रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला शोला समझा था उसे मैं प भभूका निकला महर ओ मह उस की फबन देख के हैरान रहे जब वरक़ यार की तस्वीर-ए-दो-रू का निकला ये अदा देख के कितनों का हुआ काम तमाम नीमचा कल जो टुक उस अरबदा-जू का निकला मर गई सर्व पे जब हो के तसद्दुक़ क़ुमरी उस से उस दम भी न तौक़ अपने गुलू का निकला 'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला