रात साए से भी झगड़ा कर लिया ख़ुद को बिल्कुल ही अकेला कर लिया भूलने की ज़िद में ये क्या कर लिया रंग ही यादों का पक्का कर लिया वो भी हम से अजनबी बन कर मिला हम ने भी लहजे को सादा कर लिया हाथ मलते रह गए सारे भँवर और कश्ती ने किनारा कर लिया रात बे-सुध हो के सोएगी यहाँ इस लिए सूरज ने पर्दा कर लिया