यूँ चार दिन की बहारों के क़र्ज़ उतारे गए तुम्हारे बअ'द के मौसम फ़क़त गुज़ारे गए ज़रा सी दूर तो सैलाब के सहारे गए भँवर में उलझे तो फिर हाथ पाँव मारे गए सदा का देर तलक गूँजना बहुत भाया फिर एक नाम बयाबाँ में हम पुकारे गए छुपा छुपा के जो रातों ने ख़्वाब रक्खे थे वो सारे दिन के उजालों के हाथ मारे गए कुछ एक चेहरे मिरी चश्म-ए-तर में तैरते हैं कुछ इक सफ़ीने अभी तक न पार उतारे गए