रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार हैं तेरी आँखें लोग सौदा हैं ख़रीदार हैं तेरी आँखें क्या यूँही जाज़िब-ओ-दिलदार हैं तेरी आँखें ख़ालिक़-ए-हुस्न का शहकार हैं तेरी आँखें ये न होतीं तो किसी दिल में न तूफ़ाँ उठता शौक़-अंगेज़ ओ फ़ुसूँ-कार हैं तेरी आँखें तेरी मासूमियत-ए-दिल का पता देती हैं तेरी महबूबी का इक़रार हैं तेरी आँखें जाम-ओ-मीना की तरह ख़ुद ही छलक जाती हैं कितनी मख़मूर हैं सरशार हैं तेरी आँखें उन की तक़्दीस पे हो अज़्मत-ए-मर्यम भी निसार कौन कहता है गुनहगार हैं तेरी आँखें पलकें बोझल हैं मधुर नींद के मारे लेकिन जाने क्या बात है बेदार हैं तेरी आँखें जैसे सावन की घटा टूट के बरसे ऐ दोस्त आज कुछ ऐसे गुहर-बार हैं तेरी आँखें मेरे महबूब-ए-दिल-आवेज़ बता दे इतना मुझ से किस शय की तलबगार हैं तेरी आँखें हसरतें दिल में लिए डूब रहा है 'दौराँ' मौज-दर-मौज हैं मंजधार हैं तेरी आँखें