पहले घिरे थे बे-ख़बरों के हुजूम में अब आ गए हैं दीदा-वरों के हुजूम में कुछ भी नहीं है उड़ती हुई राख के सिवा क्या ढूँडते हो कम-नज़रों के हुजूम में शहरों में आइनों के ख़रीदार ही नहीं इक बे-कली है शीशा-गरों के हुजूम में पहचान लीजे कौन है इंसाँ का रहनुमा इन बे-शुमार राहबरों के हुजूम में पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा पुख़्ता मकान कच्चे घरों के हुजूम में तेशा-ब-दस्त हर कोई रहता है रात दिन हम दिल-जलों के बे-जिगरों के हुजूम में 'दौराँ' भी एहतिजाज ही करते हुए मिले सड़कों पे गश्त करते सरों के हुजूम में