रौशनी के रूप में ख़ुश्बू में या रंगों में आ मैं तुझे पहचान लूँगा कितने ही चेहरों में आ बंद आँखों में भी क्या होगी तिरी बे-पर्दगी छीन ले मुझ से ये नींदें या मिरे ख़्वाबों में आ नाच उठे रक़्क़ासा-ए-जाँ धड़कनों की थाप पर साज़ हाथों में उठाए दिल के सन्नाटों में आ तू जो शरमाता है मेरे सामने आते हुए ओढ़ ले मेरा तसव्वुर फिर मिरी बाहोँ में आ कर दिए हैं ज़िंदगी ने मुख़्तलिफ़ हिस्से मिरे मुझ से मिलना है अगर बट कर कई सायों में आ शहर में भी ख़ाक उड़ाती फिर रही हैं वहशतें छोड़ वीराने 'मुज़फ़्फ़र' अब गली-कूचों में आ