थे ज़मीं पर न आसमान में थे हम दुआओं के साएबान में थे गुज़रे लम्हात से चलो पूछें हम कहाँ और किस जहान में थे किस तरह करते हम ग़ज़ल-रानी इक तवालत भरी तकान में थे चाहते तुम कहीं से पढ़ लेते हम तो हर एक दास्तान में थे करते किरदार अपनी मर्ज़ी के प्यार के क़िस्से हर ज़बान में थे इश्क़ रुस्वाइयों से था महफ़ूज़ आब-पारे जो नूर-दान में थे करते किस किस से आश्नाई हम इस क़दर चेहरे अक्स-दान में थे