रौशनी बन कर अंधेरे में बिखर जाता है कौन रफ़्ता रफ़्ता ज़ेहन के अंदर उतर जाता है कौन मुंतशिर होता तो है लेकिन सँवर जाता है कौन रेज़ा रेज़ा हो के भी यकसर निखर जाता है कौन अपनी अपनी ज़िद पे क़ाएम हैं अभी दिल और दिमाग़ देखना है वक़्त की ठोकर से डर जाता है कौन जानता हूँ मेरी मुश्किल की दवा है तेरे पास माँगने ख़ैरात लेकिन तेरे घर जाता है कौन सरहदें मायूसियों की बढ़ती जाती हैं 'नसीम' दामन-ए-उम्मीद इतना तंग कर जाता है कौन