रौशनी के इक हवाले को लिए फिरता हूँ मैं अपनी जेबों में उजाले को लिए फिरता हूँ मैं मेरा मस्लक है जहाँ में सब को ठंडक बाँटना चाँद हूँ धरती पे हाले को लिए फिरता हूँ में सिद्क़ के इज़हार का इस से बड़ा क्या हो सुबूत आज कल होंटों पे ताले को लिए फिरता हूँ मैं मौत को मुझ से नहीं है छीनने वाला कोई ज़हर-ए-ख़ालिस के पियाले को लिए फिरता हूँ मैं जो भी मेरे सामने आएगा खाएगा शिकस्त दिल में उम्मीदों के भाले को लिए फिरता हूँ मैं हो गया है आँख में महफ़ूज़ ख़ूँ रोया हुआ बादलों के सुर्ख़ गाले को लिए फिरता हूँ मैं परवरिश पाती हैं साजिद मकड़ियाँ तख़्लीक़ की ज़ह्न में सोचों के जाले को लिए फिरता हूँ मैं