रवाँ-दवाँ है ज़िंदगी चराग़ के बग़ैर भी है मेरे घर में रौशनी चराग़ के बग़ैर भी थे जिस की जुस्तुजू में सब हरीफ़-ए-कारवान-ए-शब वो राह हम ने ढूँड ली चराग़ के बग़ैर भी मोहब्बतों के दीप हर क़दम पे मैं जलाऊँगा है मुझ में ज़ौक़-ए-आगही चराग़ के बग़ैर भी वो ज़िंदगी जो मशअ'ल-ए-वफ़ा की हम-रिकाब थी गुज़र गई हँसी-ख़ुशी चराग़ के बग़ैर भी