रविश रविश पे जवानी के ताजदार आए जुनूँ के क़ाफ़िले वाबस्ता-ए-बहार आए वो रात जिस का बड़ा इंतिज़ार था दिल को वो रात दर्द के पहलू में हम गुज़ार आए मिला जवाब हरम से न बुत-कदे से कहीं गली गली में तिरे नाम को पुकार आए ख़ुदा करे मिरी रातों में काएनात-ए-जमाल गई बहार को ले कर हज़ार बार आए किसी की याद के जल्वों के बे-क़रार हुजूम उफ़ुक़ से चाँद जो उभरा तो अश्क-बार आए जो होने वाला है हो कर रहेगा 'मीर' आख़िर मगर मजाल है दिल को कहीं क़रार आए