पशेमाँ हैं तर्क-ए-मोहब्बत के बा'द बढ़ीं उलझनें और फ़ुर्सत के बा'द अभी तो क़यामत का है आसरा ख़ुदा जाने क्या हो क़यामत के बा'द ये हुस्न-ए-ख़ुलूस-ए-शिकायत बजा मगर क्या रहेगा शिकायत के बा'द वो हर बार मिलते हैं इस शान से मिले जिस तरह कोई मुद्दत के बा'द मोहब्बत से पहले ये आलम न था कहाँ आ गए हम मोहब्बत के बा'द 'रविश' ये ख़ुश-आहंग रंग-ए-ग़ज़ल दिल-आवेज़ है रंग-ए-हसरत के बा'द