तेरे घर ख़्वाब में गया था ग़ैर अपनी आँखों से हम ने देखा है किस क़दर है मिज़ाज में गर्मी शोला है आग है भभूका है ऐ बुतो क़ाबे का करो कुछ पास दिल न तोड़ो ये घर ख़ुदा का है चुप रहो क्यूँ मिज़ाज पूछते हो हम जिएँ या मरें तुम्हें क्या है उस गुल-ए-तर के आने से 'जौहर' ख़ाना-ए-दिल तमाम महका है