रविश उस चाल में तलवार की है मौत उश्शाक़-ए-गुनहगार की है गुल ओ गुलशन से कभी जी न लगाए ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है रश्क-ए-गुलशन हो इलाही ये क़फ़स ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है निकहत-ए-गुल न सबा भी लाई ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है आ के बे-पर्दा मिलें वो दम-ए-नज़अ ये दुआ आशिक़-ए-बीमार की है पेश-ए-मेहराब न क्यूँ सज्दे हों सूरत उस अबरू-ए-ख़मदार की है चाल वो चल कि न हो महशर-ख़ेज़ ये रविश चर्ख़-ए-जफ़ाकार की है मुझ को हंगामा-ए-महशर से ग़रज़ बस तमन्ना तिरे दीदार की है तलब-ए-राह-ए-ख़ुदा में लेकिन पैरवी हैदर-ए-कर्रार की है