राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस ख़ूब-रूयों से जहाँ के दिल लगाना है अबस कारगर होगा तिरा अफ़्सूँ ये बावर है तुझे उस परी पर ऐ दिल-ए-वहशी दिवाना है अबस जीते फिर आने की पहले रख तवक़्क़ो' दिल से दूर वर्ना कूचे में सितम-गारों के जाना है अबस ख़ाक हो कर एक सूरत है गदा-ओ-शाह की गर मुआफ़िक़ तुझ से ऐ मुनइ'म ज़माना है अबस याद किस को रहम जी में कब दिमाग़-ओ-दिल कहाँ याँ न आने का मिरे साहब बहाना है अबस दिल-शिकन है सुब्ह-दम तेरा ही गुलचीं बाग़ में आशियाँ ऐ अंदलीब उस जा बनाना है अबस ऐ गुल-ए-ख़ंदाँ सबात-ए-उम्र है शबनम से कम याँ बहार-ए-रंग पर हँसना हँसाना है अबस वाँ फिरे हैं तरकश-ए-मिज़्गाँ तलाश-ए-सैद पर याँ तिरा दिल तीर-ए-हसरत का निशाना है अबस आबरू कहते हैं जिस को है 'मुहिब' इक क़तरा आब जब ढलक जावे तो फिर उस का उठाना है अबस