मिरी फ़ितरत हक़ीक़त-आश्ना मा'लूम होती है नज़र पड़ती है जिस शय पर ख़ुदा मा'लूम होती है सरापा सोज़ लेकिन जाँ-फ़िज़ा मा'लूम होती है सदा-ए-साज़-ए-दिल हक़ की सदा मा'लूम होती है बहुत ख़ुश-ज़र्फ़-ओ-ख़ुश-बीं है फ़ज़ा-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत ब-ज़ाहिर हमदम-ओ-दर्द-आश्ना मा'लूम होती है ये कैसी ज़िंदगी है ऐ असीर-ए-दाम-ए-ख़ुश-फ़हमी जफ़ा-ए-बाग़बाँ भी अब वफ़ा मा'लूम होती है मैं उस मंज़िल में हूँ अब गाम-फ़र्सा ऐ ज़हे-क़िस्मत निगाह-ए-राहज़न भी रहनुमा मा'लूम होती है ये रंग-ए-शेर-गोई राज़ ये तर्ज़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी तिरी फ़ितरत हक़ीक़त-आश्ना मा'लूम होती है