है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल क्या कोई देगा तुझे इस से ज़ियादा ऐ दिल मुद्दतों जान छिड़कते रहे जिस लम्स पे वो ओढ़ कर आ गया ख़ुश्बू का लबादा ऐ दिल सोच ज़ंजीर-ब-पा फ़िक्र है पाबंद-ए-रसन क्या यही सुब्ह-ए-तमन्ना का है जादा ऐ दिल अब भी रौशन किए बैठा है उम्मीदों के चराग़ कितना मासूम है तू कितना है सादा ऐ दिल ख़ूँ में लुथड़े हुए लाशे हैं नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा और कर मंज़िल-ए-जानाँ का इरादा ऐ दिल ख़ुद-फ़रेबी का फ़ुसूँ तुझ पे है कारी वर्ना कम नहीं है शब-ए-ग़म से शब-ए-व'अदा ऐ दिल