रेशमी ज़ुल्फ़ तुम्हारी लगी मख़मल की तरह और ये जिस्म है ख़ुशबू भरा संदल की तरह आप से दूरियाँ बर्दाश्त नहीं होती हैं जी में आता है लिपट कर रहूँ आँचल की तरह इक दफ़ा आप की नज़रों से मिलीं क्या नज़रें बस गईं आप निगाहों में हैं काजल की तरह मौत ही मौत नज़र आ रही ता-हद्द-ए-नज़र सब अदाएँ हैं तुम्हारी किसी मक़्तल की तरह वो नशा है कि अब 'इक़बाल' उतरता ही नहीं हर घड़ी सामने रहते हैं वो बोतल की तरह