रिदा-ए-राहत-ए-कौन-ओ-मकान ओढ़ के देख ज़मीन ओढ़ के देख आसमान ओढ़ के देख तिलिस्म टूट चुका जब चराग़-ए-ज़ुल्मत का कभी सबाहत-ए-नाम-ओ-निशान ओढ़ के देख पड़ा रहेगा कहाँ तक तू अपने तरकश में ख़दंग-ए-जस्ता अगर है कमान ओढ़ के देख क़रीब आ ही गया है अगर वो अब्र-ए-करम सफ़र में आज यही साएबान ओढ़ के देख हवा-ए-शहर हक़ीक़त में साँस लेते हुए निगार-ख़ाना-ए-वहम-ओ-गुमान ओढ़ के देख फिर एक बार किसी जंग पर निकलते हुए फ़ज़ा-ए-क़र्या-ए-अम्न-ओ-अमान ओढ़ के देख नया लिबास पहनने का वक़्त है 'साजिद' शिकोह ओढ़ के देख आन-बान ओढ़ के देख