रिंद बेताब हैं घनघोर घटा छाई है मय-कदे गूँज रहे हैं वो बहार आई है बज़्म-ए-अग़्यार में उस ने मुझे दरयाफ़्त किया बा'द मुद्दत के उसे याद मिरी आई है कट ही जाती हैं किसी तरह हमारी रातें ग़म सलामत रहे वो मोनिस-ए-तन्हाई है क़त्ल करने को मिरे आते हैं वो तेग़-ब-दस्त मैं समझता हूँ मिरे हक़ में मसीहाई है उन को ये ज़िद है न देखेंगे कभी मेरी तरफ़ मैं ने भी दर से न उठने की क़सम खाई है है ये रिंदों के तआक़ुब में कोई राज़ अमीक़ वर्ना औरों से भी वाइ'ज़ की शनासाई है पूछने आए हैं वो हाल मिरा ऐ 'हाफ़िज़' ज़ोफ़ से सल्ब यहाँ ताक़त-ए-गोयाई है