रिश्ता-ए-दिल भी किसी दिन ख़्वाब सा हो जाएगा तेरे मेरे दरमियाँ वो फ़ासला हो जाएगा पीली पीली रुत जुदाई की अचानक आएगी क़ुर्बतों का सब्ज़ मौसम बेवफ़ा हो जाएगा आईने रंगों के ख़ाली छोड़ जाएगी धनक हैरतें रह जाएँगी मंज़र जुदा हो जाएगा क्या निशाना ठीक बैठेगा हवा-ए-तेज़ में जो कमाँ से तीर निकलेगा ख़ता हो जाएगा तेरी पेशानी पे भी पड़ जाएँगे तल्ख़ी से बल मेरी सच्ची बात पर तू भी ख़फ़ा हो जाएगा घर से निकलूँगा हथेली पर लिए उजला चराग़ इल्म है काली हवा का सामना हो जाएगा आने वाले जाने वालों का बदल होते नहीं पर नहीं होगा जो पैदा इक ख़ला हो जाएगा टूट जाएगा दर-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ का ग़ुरूर एक आवाज़ आएगी क़ैदी रिहा हो जाएगा मैं नहीं तो और ही बैठेगा कोई छाँव में आज का छोटा सा बूटा कल बड़ा हो जाएगा आस्तीनों से निकालेंगे जियाले आफ़्ताब बोल-बाला रौशनी के शहर का हो जाएगा चाँद को ढूँडेंगी आँखें फिर न सूरज को 'रशीद' चाँद-सूरज से तअ'ल्लुक़ दूसरा हो जाएगा