शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह अब ऐश-ओ-इशरत-ए-दोनों-जहाँ है मुझ कूँ मुबाह यही है फ़र्क़ हम और तुम मुनीं सुन ऐ ज़ाहिद वहाँ जो तुझ को मिलेगा यहाँ है मुझ कूँ मुबाह जिन्हों के तीर-ए-मिज़ा दिल कूँ फोड़ चलते हैं वो शोख़ दिलबर-ए-अबरू-कमाँ है मुझ कूँ मुबाह शराब ओ शाहिद ओ ख़ल्वत सियाह-मस्ती होश इसी जहान मुनीं बेगमाँ है मुझ कूँ मुबाह ख़राब दुख़्तर-ए-रज़ के हुए हैं सब 'यकरू' अजब कि शैख़ कहे है कहाँ है मुझ कूँ मुबाह