रिवाज-ओ-रस्म न घर-बार के मुसाफ़िर हैं हम और लोग हैं उस पार के मुसाफ़िर हैं सफ़र क़दीम से दरपेश कौन सा है हमें न जाने कौन सी दीवार के मुसाफ़िर हैं न मंज़िलों का तअ'य्युन न रास्तों की ख़बर हम ऐसे लोग तो बे-कार के मुसाफ़िर हैं न सर में डर है कहीं का न ख़ौफ़-ए-जौर-ओ-सितम अज़ाब रास हैं आज़ार के मुसाफ़िर हैं हैं फ़र्श-ए-राह बलाएँ तो हम-क़दम आसेब किसी जहान पर असरार के मुसाफ़िर हैं मिले अगर तो भरे ख़ुशबुएँ ख़यालों में कि दस्त-ए-यार-ए-तरह-दार के मुसाफ़िर हैं बिना-ए-रख़्त बिना-ए-सफ़र तवक्कुल है मदद न दस्त-ए-मदद-गार के मुसाफ़िर हैं शुमार-ए-मौज़ूअ'-ए-फ़ितरत में सर खपाते हैं सरों में दौड़ते अफ़्कार के मुसाफ़िर हैं वो दोस्ती हो अदावत हो कुछ भी हो 'ताहिर' हर एक चीज़ में मेआ'र के मुसाफ़िर हैं