रियाज़-ए-मर्क़द-ओ-मेहराब में बसर की है By Ghazal << शब की पहनाइयों में चीख़ उ... ज़ख़्म सुनते हैं लहू बोलत... >> रियाज़-ए-मर्क़द-ओ-मेहराब में बसर की है मुज़श्तराब अजब ख़्वाब में बसर की है किसी सबब की ज़रूरत नहीं पड़ी है हमें कुछ ऐसे आलम-ए-असबाब में बसर की है रह-ए-सुलूक से सीखा है ज़िंदगी का चलन तमाम-उम्र कुछ आदाब में बसर की है Share on: