ये रौश्नी-ए-तब्अ' दिखाने की आरज़ू अच्छी नहीं बला को बुलाने की आरज़ू जो ग़म मिले गले से लगाने की आरज़ू रस्म-ओ-रह-ए-हयात निभाने की आरज़ू ये भी भला है कोई ठिकाने कि आरज़ू हर नक़्श-ए-आरज़ू को मिटाने की आरज़ू सहरा कि सख़्त धूप में जलते हुए बदन बार-ए-ग़म-ए-हयात उठाने कि आरज़ू हर ज़ाविए से हुस्न-ए-बदन देखने का शौक़ रखते हैं लोग आईना-ख़ाने की आरज़ू ये ख़्वाहिशें ये जेहद-ए-मुसलसल ये दौड़-धूप नक़्श-ओ-निगार-ए-ज़ीस्त बनाने की आरज़ू अपनी शनाख़्त ये है कि घर है न दर मगर दीवार-ओ-दर पे नाम लिखाने की आरज़ू ये क़ुर्बतों की रात ये जलते हुए बदन निकलेगी आज एक ज़माने की आरज़ू बदनाम हो चुका है ये फ़न्न-ए-शरीफ़ भी कहने का शौक़ है न सुनाने की आरज़ू अपनी मता-ए-ग़म को लिए हम भी लौट आए हर शख़्स को थी अपनी सुनाने की आरज़ू जिस हाल में हैं साबिर-ओ-शाकिर हैं 'ताज' हम खोने का कोई ग़म है न पाने की आरज़ू