आरज़ूएँ जल गईं शौक़-ए-फ़रावाँ जल गया बुझ गया दिल ज़िंदगी का साज़-ओ-सामाँ जल गया मौसम-ए-गुल था कि थी बर्क़-ए-ख़िज़ाँ ज़ेर-ए-नक़ाब फूल हँसने भी न पाए थे गुलिस्ताँ जल गया शौक़-ए-मंज़िल में जुनूँ की गर्म-रफ़्तारी न पूछ राह के काँटों की क्या हस्ती बयाबाँ जल गया झूम कर सू-ए-चमन आया तो क्या बरसा तो क्या आशियाँ तो कब का ऐ अब्र-ए-बहाराँ जल गया हश्र के दिन रहमत-ए-हक़ ने लिया आग़ोश में ज़ौक़-ए-इस्याँ पर मिरे ज़ाहिद का ईमाँ जल गया देख 'क़ैसर' ये है गुलशन में मआल-ए-फ़स्ल-ए-गुल ग़ुंचे ग़ुंचे का गुलिस्ताँ में गरेबाँ जल गया