रोइए मत मियाँ समझते हैं सारी मजबूरियाँ समझते हैं सब जिन्हें बे-ज़बाँ समझते थे प्यार की वो ज़बाँ समझते हैं हम तो बचपन से एक दूजे की ख़ूबियाँ ख़ामियाँ समझते हैं क्या मोहब्बत के मा'नी समझाएँ आज के नौजवाँ समझते हैं हम तो धरती पे जान देते हैं हम तो धरती को माँ समझते हैं ख़ूब वाक़िफ़ हैं अपने बच्चों से बाग़ को बाग़बाँ समझते हैं कितना सादा मिज़ाज है उन का हाँ का मतलब भी हाँ समझते हैं क्या मोहब्बत है जानते हैं 'फ़ैज़' हम कि अठखेलियाँ समझते हैं