रोज़ दिल में हसरतों को जलता बुझता देख कर थक चुका हूँ ज़िंदगी का ये रवैया देख कर रेज़ा रेज़ा कर दिया जिस ने मिरे एहसास को किस क़दर हैरान है वो मुझ को यकजा देख कर क्या यही महदूद पैकर ही हक़ीक़त है मिरी सोचता हूँ दिन ढले अब अपना साया देख कर कुछ तलब में भी इज़ाफ़ा करती हैं महरूमियाँ प्यास का एहसास बढ़ जाता है सहरा देख कर मेरे ख़्वाबों पर भी उस ने नाम अपना लिख लिया अब भी क्यूँ ख़ामोश हूँ मैं ये तमाशा देख कर सच तो ये है सब को अपनी जान प्यारी है यहाँ उड़ गए सारे परिंदे पेड़ कटता देख कर 'शाद' जाने जी रहे हो कौन सी दुनिया में तुम दुनिया दुनिया कर रहे हो अब भी दुनिया देख कर