सदा-ए-दिल न कहीं धड़कनों में गुम हो जाए ये क़ाफ़िला न कहीं रास्तों में गुम हो जाए ये दिल का दर्द जो आँखों में आ गया है मिरी मैं चाहता था मिरे क़हक़हों में गुम हो जाए तुझे ख़बर भी है ये बे-हिसों की बस्ती है तिरी सदा न कहीं पत्थरों में गुम हो जाए मैं ख़ुद को ढूँढने निकला तो खो गया जैसे निकल के घर से कोई रास्तों में गुम हो जाए न जाने आज है तारों को क्यूँ ये अंदेशा ये रात भी न कहीं जुगनुओं में गुम हो जाए मैं बार-हा तिरी यादों में इस तरह खोया कि जैसे कोई नदी जंगलों में गुम हो जाए चमन से क्यूँ न शिकायत हो 'शाद' रंगों को हर एक फूल अगर ख़ुशबुओं में गुम हो जाए