रोज़ दिलहा-ए-मै-कशाँ टूटे ऐ ख़ुदा जाम-ए-आसमाँ टूटे दुश्मनी इस ज़मीन की देखो गुम्बद-ए-क़ब्र-ए-दोस्ताँ टूटे वस्फ़-ए-अबरू-ए-पुर-शिकन जो न हो क्या अजब ख़ंजर-ए-ज़बाँ टूटे रंग लाए अगर शिकस्ता-दिली बुलबुलो शाख़-ए-आशियाँ टूटे निकहत-ए-गुल से बस गया गुलशन ग़ुंचा क्या चटके इत्र-दाँ टूटे ख़ूब फैली है बू-ए-बादा-ए-इश्क़ शीशा-ए-दिल कहाँ कहाँ टूटे ले उड़ेगी हवा-ए-बाम हमें न करेंगे जो नर्दबाँ टूटे क़स्द-ए-पर्वाज़ का जो बोझ पड़ा बाज़ू-ए-मुर्ग़-ए-ना-तवाँ टूटे लखनऊ चल के जी लगाऊँ 'मुनीर' किस लिए दिल मिरा यहाँ टूटे