उम्र गुज़री मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार के साथ लब मिलाए थे कभी मैं ने लब-ए-यार के साथ ग़म-ए-जानाँ की अज़िय्यत ग़म-ए-दुनिया का अज़ाब ज़िंदगी मैं ने गुज़ारी बड़े आज़ार के साथ गर्द में डूब गया सिलसिला-ए-शाम-ओ-सहर वक़्त भी चल नहीं सकता मिरी रफ़्तार के साथ मिरी ख़ुद्दार तबीअ'त ने बचाया मुझ को मेरा रिश्ता किसी दरबार न सरकार के साथ देखना कूचा-ए-जानाँ में कहीं 'सैफ़' न हो एक साया सा नज़र आता है दीवार के साथ