रोज़ दोहराएँगे जब शाम-ओ-सहर की तारीख़ कैसे बदलेगी भला आप के घर की तारीख़ उन फ़ज़ाओं में कोई बढ़ के दिखाए तो कमाल ख़ुद-ब-ख़ुद होगी रक़म बाज़ू-ए-पर की तारीख़ अपने बच्चों को न दें पाए कभी कोई ख़ुशी सिर्फ़ हम लिखते रहे अपने हुनर की तारीख़ लूटने वाले कभी लूट न पाएँगे मुझे मैं बता दूँगा अगर रख़्त-ए-सफ़र की तारीख़ अपनी तारीख़ पे इस दर्जा भरोसा हैं हमें हम न देखेंगे इधर और उधर की तारीख़ लाख बेयार-ओ-मददगार फिरे साहिल पर क़ैद रहती है सदफ़ में ही गुहर की तारीख़ 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' जिन्हें कहता है ज़माना 'शाहिद' उन के हर शे'र में है फ़िक्र-ओ-नज़र की तारीख़