रोज़ मुर्ग़ा बना करे कोई कब तक आख़िर पिटा करे कोई जब कहीं नौकरी नहीं मिलती डिग्रियाँ ले के क्या करे कोई मुझ को रीडिंग से सख़्त नफ़रत है मैं सुनूँ और पढ़ा करे कोई जिस में आती हो बू तअ'स्सुब की ऐसी तारीख़ क्या करे कोई जिन में जंग-ओ-जदल के क़िस्से हों वो कुतुब क्यों पढ़ा करे कोई ग़ैर-मुल्की ज़बान इंग्लिश को ख़्वा-मख़्वाह क्यों रटा करे कोई नहीं उम्मीद-ए-कामयाबी जब इम्तिहाँ दे के क्या करे कोई ख़ूब इंसाफ़ है कि दर्जे में मैं पिटूँ और ख़ता करे कोई कब तक आख़िर बग़ैर समझे हुए फ़ार्मूले रटा करे कोई 'कैफ़' आता नहीं जवाब-ए-ख़ुदा ख़त कहाँ तक लिखा करे कोई