रोकता है ग़म-ए-इज़हार से पिंदार मुझे मेरे अश्कों से छुपा ले मिरे रुख़्सार मुझे देख ऐ दश्त-ए-जुनूँ भेद न खुलने पाए ढूँडने आए हैं घर के दर-ओ-दीवार मुझे सी दिए होंट उसी शख़्स की मजबूरी ने जिस की क़ुर्बत ने किया महरम-ए-असरार मुझे मेरी आँखों की तरफ़ देख रहे हैं अंजुम जैसे पहचान गई रूह-ए-शब-तार मुझे जिंस-ए-वीरानी-ए-सहरा मेरी दूकान में है क्या ख़रीदेगा तिरे शहर का बाज़ार मुझे जरस-ए-गुल ने कई बार पुकारा लेकिन ले गई राह से ज़ंजीर की झंकार मुझे नावक-ए-ज़ुल्म उठा दशना-ए-अंदोह सँभाल लुत्फ़ के ख़ंजर-ए-बे-नाम से मत मार मुझे सारी दुनिया में घनी रात का सन्नाटा था सेहन-ए-ज़िंदाँ में मिले सुब्ह के आसार मुझे