रोते रोते तन्हा चलते गिरते-पड़ते थक सा गया हूँ कोई आँचल कोई साथी कोई सहारा ढूँड रहा हूँ रंग-बिरंगे कपड़ों में इक मजमा' मेले से आया है कोई चेहरा उन चेहरों में तेरे जैसा ढूँड रहा हूँ ऐ गुलशन के रहने वालो में तुम को क्या याद करूँगा फूल नहीं तो काँटे भर दो झोली फैलाए बैठा हूँ पहले ख़ुद को तो समझा ले औरों को समझाने वाले तू भी ख़ुद में इक आलम है मैं भी ख़ुद में इक दुनिया हूँ चंचल बेगाना सौदाई हँसमुख फ़रज़ाना हरजाई एक ज़रा सा जिस्म है जिस में छे छे 'अश्क' लिए फिरता हूँ