रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब नाचती शब में बरहना हो गए क्यूँ सब के सब ख़ुद-कुशी कर ली भरे गुलशन में जिस ने बे-सबब मैं ने सीखा है उसी हमराज़ से जीने का ढब हँसते हँसते रूह की आवाज़ पागल हो गई गुम्बदों की ख़ामुशी ने देर तक खोले न लब पी रहे हैं ख़ुशनुमा शीशों में लोग अपना लहू और क्या होगा अनोखे रंग का जश्न-ए-तरब ऐ मोहब्बत अब तो लौटा दे मिरे सज्दे मुझे मरते दम तक ज़िंदगी करती रही तेरा अदब लाश सूरज की सियह कमरे में थी लटकी हुई मेरे घर का क़ुफ़्ल खोला शब की तन्हाई ने जब 'प्रेम' तेरी शाएरी है या मुक़द्दस जू-ए-शीर तीशा-ए-तख़्लीक़ जिस से दाद करता है तलब