रूदाद मुझ से दिल की सुनाई नहीं गई इस वास्ते रगों से दुहाई नहीं गई इक ख़्वाब तो उठा लिया मैं ने चुरा के आँख ता'बीर उस की मुझ से उठाई नहीं गई गो हिज्र पूरे शहर की चौखट से उठ गया लेकिन मिरी गली से जुदाई नहीं गई पत्थर बना हुआ था मैं अपने वजूद में दरिया से मेरी लाश उठाई नहीं गई पुश्ते मैं बाँधता रहा अपने वजूद पर लेकिन मिरे बदन की कटाई नहीं गई इतना ही फ़र्क़ है मिरे और क़ैस में हुज़ूर बस मुझ से अपनी ख़ाक उड़ाई नहीं गई चेहरे पे गरचे तू ने तग़ाफ़ुल सजा लिया आँखों से दिल की बात छुपाई नहीं गई उस बेवफ़ा से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तो कर लिया तस्वीर उस की मुझ से जलाई नहीं गई