रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो फिर भी अपने बाम-ओ-दर बे-चराग़ हैं यारो आओ हम में ढल जाओ उम्र भर के प्यासे हैं तुम शराब हो यारो हम अयाग़ हैं यारो जिन पे बारिश-ए-गुल है उन का हाल क्या होगा ज़ख़्म खाने वाले भी बाग़ बाग़ हैं यारो जिन को रह के काँटों में ख़ुश-मिज़ाज होना था वो मक़ाम-ए-गुल पा कर बे-दिमाग़ हैं यारो हम से मिल के फ़ितरत के पेच-ओ-ख़म को समझोगे हम जहान-ए-फ़ितरत का इक सुराग़ हैं यारो ना-शनासों की तहसीं रंग लाई है क्या क्या कोइले भी अब लाल-ए-शब-चराग़ हैं यारो हम हसीन ग़ज़लों से पेट भर नहीं सकते दौलत-ए-सुख़न ले कर बे-फ़राग़ हैं यारो