वजूद पर इंहिसार मैं ने नहीं किया था कि ख़ाक का ए'तिबार मैं ने नहीं किया था सफ़ेद रेशम की ओढ़नी मेरे हाथ में थी मगर उसे दाग़दार मैं ने नहीं किया था ये बे-नियाज़ी की ख़ू मिरे हुस्न में बहुत थी मगर उसे बे-क़रार मैं ने नहीं किया था कहीं से यक-लख़्त ज़िंदगी मेरी काट देगा जो रास्ता इख़्तियार मैं ने नहीं किया था सुमों तले रौंद दे ख़ुशी से मगर ये सुन ले गुनाह ऐ शहसवार मैं ने नहीं किया था दिखाई देने लगा वो इक तीसरा किनारा अभी जवानी को पार मैं ने नहीं किया था ग़ुरूब का वक़्त था मुक़र्रर सो चल पड़ा मैं किसी का फिर इंतिज़ार मैं ने नहीं किया था