रूह बख़्शी है काम तुझ लब का दम-ए-ईसा है नाम तुझ लब का हुस्न के ख़िज़्र ने किया लबरेज़ आब-ए-हैवाँ सूँ जाम तुझ लब का मंतिक़-ओ-हिक्मत-ओ-मआ'नी पर मुश्तमिल है कलाम तुझ लब का जन्नत-ए-हुस्न में किया हक़ ने हौज़-ए-कौसर मक़ाम तुझ लब का रग-ए-याक़ूत के क़लम सूँ लिखें ख़त परिस्ताँ पयाम तुझ लब का सब्ज़ा-ओ-बर्ग-ओ-लाला रखते हैं शौक़ दिल में दवाम तुझ लब का ग़र्क़-ए-शक्कर हुए हैं काम-ओ-ज़बाँ जब लिया हूँ मैं नाम तुझ लब का मिस्ल-ए-याक़ूत ख़त में है शागिर्द साग़र-ए-मय मुदाम तुझ लब का है 'वली' की ज़बाँ को लज़्ज़त-बख़्श ज़िक्र हर सुब्ह-ओ-शाम तुझ लब का