रूह के मलबे से लिपटे नम का अंदाज़ा न कर मुझ से मिल तो मेरे पहले ग़म का अंदाज़ा न कर वर्ना मेरी रेत ख़ुद में जज़्ब कर लेगी तुझे सरसरी सहरा के पेच-ओ-ख़म का अंदाज़ा न कर धूप की टूटी हुई तख़्ती पे बारिश ने लिखा घर के अंदर बैठ कर मौसम का अंदाज़ा न कर ऐ हवा-ए-ताज़ा अगली मंज़िलों की सम्त देख मुझ में फैले हब्स के आलम का अंदाज़ा न कर बद-समाअ'त शख़्स ये सब तेरी वुसअ'त में कहाँ साज़-ए-जाँ की लर्ज़िश-ए-पैहम का अंदाज़ा न कर सैर कर सर्व-ओ-समन के दरमियाँ ऐ गुल-नज़ाद आहू-ए-वहशत-ज़दा के रम का अंदाज़ा न कर यूँ न हो आँखें तिरी पत्थर की हो जाएँ 'नबील' इस सदी के क़िस्सा-ए-आदम का अंदाज़ा न कर