सभी रिश्तों के दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हो रहे हैं हमारे बीच जो रस्ते थे दलदल हो रहे हैं अभी तो दश्त आए और फिर इस के बाद जंगल अभी से क्यों तुम्हारे पाँव बोझल हो रहे हैं ज़माने बाद सोया हूँ मुझे सोने दो कुछ पल अधूरे ख़्वाब थे जितने मुकम्मल हो रहे हैं ये कैसी बे-हिसी की धूल हम पर छा रही है ख़ुद अपनी ज़िंदगी से हम मोअ'त्तल हो रहे हैं थकन अब आप की आँखों में जमती जा रही है सो अब हम आप की नज़रों से ओझल हो रहे हैं 'नबील' उतरा है कैसा दिल-रुबा मौसम ज़मीं पर कि जितने नीम थे बस्ती में संदल हो रहे हैं