रूह शादाब दिल ग़नी कर लो हम फ़क़ीरों से दोस्ती कर लो चश्म-ए-बीना नहीं तो सब कुछ गुम चाहे कितनी ही रौशनी कर लो एक चूल्हा अलग हुआ घर में एक दीवार भी खड़ी कर लो क़ीमतें कम कभी नहीं होंगी अपनी फ़िहरिस्त में कमी कर लो वक़्त है आज मेहरबाँ तुम पर और कुछ दिन सिकंदरी कर लो दुश्मनों की दुआ दराज़ी-ए-उम्र दोस्त कहते हैं ख़ुद-कुशी कर लो आज का काम कल पे मत छोड़ो आज भी देर क्यों अभी कर लो