उस ने कुछ मुझ से कहा था शायद या मुझे वहम हुआ था शायद चार-सू रक़्स-कुनाँ थी ख़ुशबू फूल पत्तों में छुपा था शायद यूँही आँचल नहीं लहराया था कुछ हवाओं पे लिखा था शायद दीदा-ए-तर ने भी मायूस किया नक़्श पानी पे बना था शायद साँस क्यों रुकने लगी थी मेरी राब्ता टूट गया था शायद मैं ने ही ज़ुल्म किया था ख़ुद पर वो ही सच बोल रहा था शायद ना-मुरादी की शिकायत कैसी यही क़िस्मत का लिखा था शायद