रूह-ए-ज़माँ मकाँ मिले राज़-ए-अयाँ निहाँ मिले कब से हूँ गर्म-ए-जुस्तुजू मंज़िल-ए-कुन-फ़काँ मिले नादिरा-ए-ज़माँ मिले नाबिग़ा-ए-जहाँ मिले जिस को मैं ढूँढता हूँ वो नाज़िश-ए-मह-वशाँ मिले नाला-ए-अर्ग़वाँ मिले शो'ला-ए-अर्ग़वाँ मिले साइक़ा-ए-तपाँ मिले जलवा-ए-बे-अमाँ मिले काकुल-ए-कहकशाँ खुले आरिज़-ए-ला-मकाँ मिले दिलबर-ए-हस्त-ओ-बूद का काश कहीं निशाँ मिले यूँ तो हमें हज़ार-हा जल्वे जहाँ-तहाँ मिले जिस की मगर तलाश है देखिए कब कहाँ मिले ढूँड रहे हैं आज तक जिन को वही कहाँ मिले वर्ना रह-ए-हयात में सैंकड़ों कारवाँ मिले शो'ला-फ़िशाँ ज़मीन पर सैंकड़ों आसमाँ मिले दिल को जहाँ सकूँ मिले काश वो आस्ताँ मिले मेरी नज़र में कम नहीं वो भी किसी से ख़ुश-नसीब जिस को ग़म-ए-फ़िराक़ की दौलत-ए-बेकराँ मिले वज्ह-ए-नशात-ए-शौक़ है कितना हसीं वो एक ग़म यूँ तो यहाँ हज़ार-हा रोज़-ए-ग़म निहाँ मिले सोच रहे हैं आज हम अपनी भी क़द्र क्या है कम वो हमें गर न मिल सके हम भी उन्हें कहाँ मिले उन के लिए गुल-ओ-बहार और हमें ख़िज़ाँ-ओ-ख़ार उन को भी गुल्सिताँ मिले हम को भी गुल्सिताँ मिले सोज़-ओ-गुदाज़-ओ-दर्द-ओ-ग़म हसरत-ओ-दिल-शिकस्तगी ज़ीस्त में कितने क़ीमती हम को ये अरमुग़ाँ मिले क़र्या-ब-क़र्या शहर शहर टूट रहा है आज क़हर चीख़ उठी है रूह-ए-दहर काश कहीं अमाँ मिले शम-ए-जुनूँ लिए हुए ढूँड रहा है शहर शहर अहद-ए-ख़िरद में 'राज़' को कोई तो राज़दाँ मिले