बढ़ गया गर मिरा इसरार तो फिर क्या होगा कर दिया आप ने इंकार तो फिर क्या होगा पड़ गया सर्द ये बाज़ार तो फिर क्या होगा न रहा मैं भी ख़रीदार तो फिर क्या होगा लोग कहते हैं कि मैं तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लूँ न गया तब भी ये आज़ार तो फिर क्या होगा मैं जो बिल-फ़र्ज़ सर-ए-तूर चला भी आऊँ न हुआ आप का दीदार तो फिर क्या होगा इश्क़ की राह पे तुम चल तो दिए हो 'अंजुम' न हुआ रास्ता हमवार तो फिर क्या होगा