रुक नहीं सकते कहीं हम लम्हा-भर हैं तआ'क़ुब में वो आसेबी शजर आइना-ख़ाने मुनव्वर हो गए गर्द ने धुँदला दिए हैं रहगुज़र मंज़िलों की गर्द से भी पाक है हाए ये बहरी परिंदों का सफ़र किस की आँखों में सलाख़ें गाड़ दीं किस के सर पे रख गए ताज-ए-गुहर नित-नई शक्लें बदलता जाएगा तू अभी से अपने साए से न डर कौन बर्फ़ीली हवा की ज़द में था मुन्हरिफ़ किस से हुए दीवार-ओ-दर