रुख़ से पर्दा जो हटा दो तो मज़ा आ जाए अपना चेहरा जो दिखा दो तो मज़ा आ जाए दूरियाँ डसती हैं हर शब मुझे साँपों की तरह फ़ासले आ के मिटा दो तो मज़ा आ जाए मेरी आवाज़ अकेली भी है मद्धम भी है तुम जो आवाज़ मिला दो तो मज़ा आ जाए चाँद के मिस्ल निगाहों में हसीं चेहरा है ग़म के बादल को हवा दो तो मज़ा आ जाए जंग करता है ज़माने से अकेला 'हानी' तुम अगर साथ निभा दो तो मज़ा आ जाए